नासा और तोहो यूनिवर्सिटी का संयुक्त अध्ययन: पृथ्वी की रहने लायक क्षमता पर चिंताजनक खुलासे
एसईओ कीवर्ड्स: नासा अध्ययन, पृथ्वी अनहैबिटेबल कब होगी, सुपरकंप्यूटर सिमुलेशन, जलवायु परिवर्तन प्रभाव, सूर्य विकिरण, ऑक्सीजन स्तर गिरावट, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, पृथ्वी का भविष्य, सौर ऊर्जा परिवर्तन, पर्यावरण संकट
नासा (NASA) द्वारा जापान की तोहो यूनिवर्सिटी (Toho University) के साथ मिलकर किए गए शोध ने पृथ्वी की रहने लायक क्षमता के भविष्य पर चिंताजनक जानकारियां उजागर की हैं। अत्याधुनिक सुपरकंप्यूटर सिमुलेशनों और उन्नत जलवायु मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह ग्रह पहले की तुलना में कहीं अधिक जल्दी रहने लायक न रह सकता है। यह अध्ययन बढ़ते सौर विकिरण (solar radiation), चल रहे जलवायु परिवर्तन (climate change), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (greenhouse gas emissions) और सूर्य के धीरे-धीरे विकसित होने जैसे कारकों के तेजी से बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करता है, जो पृथ्वी के नाजुक पर्यावरण को अस्थिर करने का खतरा पैदा कर रहे हैं।
इन उन्नत मॉडलों से पता चलता है कि तापमान में वृद्धि, वायुमंडलीय स्थितियों में बदलाव, महासागरीय व्यवधान (oceanic disruptions) और लंबी अवधि के सौर परिवर्तनों (long-term solar changes) से जटिल जीवन (complex life) के लिए जीवित रहना दिन-ब-दिन अधिक कठिन और अनिश्चित हो सकता है। अध्ययन के अनुसार, लगभग 10 लाख वर्षों (one billion years) में पृथ्वी की सतह इतनी गर्म हो जाएगी कि महासागर वाष्पित (evaporate) हो जाएंगे, वायुमंडल पतला (thin) हो जाएगा, ऑक्सीजन स्तर नाटकीय रूप से कम हो जाएगा और आवश्यक संसाधन (essential resources) गायब हो जाएंगे, जिससे जीवन का अस्तित्व असंभव हो जाएगा। यह भविष्यवाणी “द फ्यूचर लाइफस्पैन ऑफ अर्थ्स ऑक्सीजनेटेड एटमॉस्फियर” (The Future Lifespan of Earth’s Oxygenated Atmosphere) नामक अध्ययन पर आधारित है, जो नेचर (Nature) पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन (human-driven climate change) इस प्रक्रिया को और तेज कर रहा है। वनों की कटाई (deforestation), प्रदूषण (pollution) और जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) के बढ़ते उपयोग से ऑक्सीजन स्तर पहले से ही गिरने लगे हैं। अध्ययन के प्रमुख लेखक कजुमी ओजाकी (Kazumi Ozaki) के अनुसार, “कई वर्षों से पृथ्वी की जैवमंडल (biosphere) की आयु को सूर्य के स्थिर उज्ज्वल होने के आधार पर चर्चा की जाती रही है।” लेकिन अब सुपरकंप्यूटर सिमुलेशनों से यह स्पष्ट हो गया है कि मानवीय गतिविधियां इस अंतिम समयसीमा को और कम कर सकती हैं। कुछ अनुमानों के मुताबिक, कुछ शताब्दियों (few centuries) में ही बड़े क्षेत्र अनहैबिटेबल (uninhabitable) हो सकते हैं, जहां तापमान में वृद्धि, जैव विविधता का नुकसान (loss of biodiversity), मीठे पानी की कमी (freshwater scarcity) और समुद्र स्तर में वृद्धि (rising sea levels) जैसे कारक सभ्यता को चुनौती देंगे।
वैज्ञानिकों ने 400,000 सिमुलेशनों (400,000 simulations) के माध्यम से पृथ्वी के वायुमंडल, सौर विकिरण और पारिस्थितिक तंत्र (ecological systems) के बीच जटिल अंतर्क्रियाओं (interactions) का विश्लेषण किया। निष्कर्ष बताते हैं कि सूर्य के विस्तार (Sun’s expansion) से निकलने वाली गर्मी धीरे-धीरे जलवायु को बदल देगी, जिससे हवा की गुणवत्ता बिगड़ेगी, तापमान चरम स्तर पर पहुंचेगा और हवा में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी। वर्तमान में ही सौर तूफान (solar storms) और कोरोना मास इजेक्शन (coronal mass ejections) जैसे घटनाएं पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) को प्रभावित कर रही हैं, जो वायुमंडलीय ऑक्सीजन को पतला कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर ये कारक विलुप्ति (extinction) की ओर ले जा रहे हैं।
यह अध्ययन मानवता के लिए एक चेतावनी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, अनुकूलन रणनीतियों (adaptive strategies) को अपनाने और अंतरिक्ष अन्वेषण (space exploration) को तेज करने की आवश्यकता है। नासा के मंगल मिशन (Mars missions) जैसे प्रयास पृथ्वी से परे बस्तियां स्थापित करने की दिशा में कदम हैं, लेकिन समय सीमित है। यदि हम सतत प्रौद्योगिकी (sustainable technology) विकसित नहीं करते, तो जलवायु परिवर्तन और सौर विकिरण के संयुक्त प्रभाव से पृथ्वी रहने लायक न रह जाएगी।
निष्कर्ष: यह शोध हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी का भविष्य हमारी कार्रवाइयों पर निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना ही एकमात्र रास्ता है, वरना हमारा ग्रह अनहैबिटेबल होने की कगार पर है। अधिक जानकारी के लिए नासा की आधिकारिक वेबसाइट या नेचर जर्नल देखें।
